Tuesday, 4 November 2014

Tanwars

Tanwars


Tomara (also called Tomar, Tanwar and Tuar) is a Hindu clan, the members of which ruled parts of North India at different times. The Tomars claim descent from the Puruvanshi lineage of Indraprashtha of Mahabharata times. People belonging to the Tomar clan are found among the Rajputs and the Gurjars of northern India.


 History

Vansh:Chandra Vansh
Lineage:Som or Chandra - Yayati - Puru - Hasti - Ajamidh - Kuru - Shantanu - Vichitrvirya - Pandu - Arjun - Abhimanyu - Parikshit - Janamejaya - Tungpal - Anangpal
Branches:Pathania, Janjua, Jarral, Janghara, Jatu, Jaraita, Satraura, Raghu
Ruled in:Indraprastha, Uttar Kuru, Delhi, Nurpur, Tanwarawati / Torawati, Gwalior, Kayasthapad, Dholpur, Tuargarh
Gotra:Atri/Kashyap/Vaiyashuk
According to historic genelogies in puranas, the Tomars are the descendants of the Pandava prince Arjuna, through his great grandson Emperor Janamejaya, son of Emperor Parikshit. Prince Dhritrashtra, blind by birth and the elder son of Kuru scion Vichitraveer abdicated the throne in favor of his younger brother Pandu whose sons were called Pandavs. King Pandu later abdicated the throne back to his elder brother due to his ill health. Their sons were involved in a great battle and finally Yudhishthira became the king after defeating Duyodhana. King Yudhishtra founded the city of Indraprastha in the Kuru kingdom and later abdicated in favour of Parikshit, the grandson of his brother Arjuna. Capital city after Mahabharata war remained Hastinapur which was later flooded and the capital of the Pandava kingdom was moved eastwards in times of King Nishchakra. Indraprastha remained one of the major cities of Kuru-Panchala Empire for many centuries. Kuru Kingdom was one of the 16 Maha Janapads (or great states) under the Magadh Empire, around 300 BC. King Kshemaka, 28th in descent from Yudhisthira was last ruler to have absolute power in the Kuru kingdom, he was overthrown by his ministers and his sons relocated near Godavari River in south India. His grandson Uttungabhuja established a small kingdom near Godavari and his descendants later re-established Indraprastha a few centuries later, under Anangpal Tomar I in the eighth century AD.
The Tomara dynasty of Delhi lasted til Anangpal Tomar-II. Part of his legacy was the construction of Lal Kot, a fortified wall around Delhi, likely in reaction to the raids of Mahmud of Ghazni. This is one of the oldest defence structures in Delhi. Anangpal Tomar II appointed his grandson (daughter's son, and son of King of Ajmer), Prithviraj Chauhan, as the heir apparent. Some historians believe that Prithvaraj was merely a caretaker king as long as his grandfather was alive. Prithviraj was never crowned in Delhi, hence adding weight to the view that the Chauhan ruler usurped the throne from his maternal grandfather.. Anangpal Tomar II had 23 brothers and they each had territory of their own.

3 comments:

  1. Om Namah Trimurti.

    It is very interesting to understand my great ancestor, King Parikhsit of Hastinapur. I'm very happy to read it.
    Thank you for telling about Hastinapur and Indraphrasta.
    May the spirits of ancestors of Pandava always follow and keep us from all evil thins around us.
    May all Devas always bless and follow our path every where.
    Om Shanti Shanti Om.

    ReplyDelete
  2. गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत

    इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज  थे।

    गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

    विन्सेंट स्मिथ का मानना ​​था कि गुर्जर वंश, जिसने 4 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था।
    स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है।

    डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।

    डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं।

    नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है।

    जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे।

    राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI

    shilalekha se bada koi proof nh 💪
    नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
    राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
    गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है

    नागबट्टा के चाचा दड्डा प्रथम को शिलालेख में "गुर्जरा-नृपाती-वाम्सा" कहा जाता है, यह साबित करता है कि नागभट्ट एक गुर्जरा था, क्योंकि वाम्सा स्पष्ट रूप से परिवार का तात्पर्य है।

    महिपाला, जो एक विशाल साम्राज्य पर शासन कर रहा था, को पंप द्वारा "गुर्जरा राजा" कहा जाता है। एक सम्राट को केवल एक छोटे से क्षेत्र के राजा क्यों कहा जाना चाहिए, यह अधिक समझ में आता है कि इस शब्द ने अपने परिवार को दर्शाया।

    भडोच के गुर्जरों के विषय में हमें दक्षिणी गुजरात से प्राप्त नौ तत्कालीन ताम्रपत्रों से चलता हैं।इन ताम्रपत्रो में उन्होंने खुद को गुर्जर नृपति वंश का होना बताया

    । मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।

    समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि गुर्जर राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों गुर्जरों हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,

    मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था । लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था।

    इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना ​​है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।

    गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा ​​तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।

    गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त था। ये भाग सामन्तों द्वारा शासित किये जाते थे। इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:

    शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
    दिल्ली के तौमर
    मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
    बुन्देलखण्ड के कलचुरि
    मालवा के परमार
    मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल
    महोवा-कालिजंर के चन्देल
    सौराष्ट्र के चालुक्य

    ReplyDelete
  3. Still 22 village of Tanwar Gurjar near pithora fort in south delhi

    ReplyDelete